जानकी
From जैनकोष
राजा जनक और उसकी रानी विदेहा की पुत्री । यह भामंडल के साथ युगकरूप में उत्पन्न हुई थी । महापुराण 68,443, पद्मपुराण - 26.121,पद्मपुराण - 26.166 महापुराण में इसे रावण की रानी मंदोदरी के गर्भ से उत्पन्न बताया गया है । इसके संबंध मे कथा है कि विद्याधर अमितवेग की पुत्री मणिमती को देखकर रावण काम के वशीभूत हो गया । इम कन्या को अपने आधीन करने के लिए रावण ने इसकी विद्या हर ली थी । बारह वर्ष की कठिन साधना से सिद्ध हुई विद्या के हरे जाने से कुपित होकर मणिमती ने निदान किया था कि वह इस राजा की पुत्री होकर इसी का वध करेगी । निदानवश वह मंदोदरी की पुत्री हुई । निमित्त ज्ञानियों से इस पुत्री को रावण ने अपने विनाश का कारण जानकर इसे मारने के लिए मारीच को आदेश दिया । मारीच ने मंदोदरी से इसे माँगा । मंदोदरी ने इसे बहुत द्रव्य के साथ एक मंजूषा में रखकर मारीच से ऐसी जगह में छोड़ने के लिए कहा जहाँ उसे कोई कष्ट न हो । मंदोदरी के आदेशानुसार मारीच ने यह मंजूषा मिथिला नगरी के उद्यान के पास की भूमि में गाड़कर रख दी । यह मंजूषा एक किसान के हल मे फँसकर उसे प्राप्त हुई । किसान ने मंजूषा महाराज जनक को दे दी । जनक ने मंजूषा में एक कन्या देखकर उसे अपनी रानी वसुधा को दे दिया । वसुधा ने उसका लालन-पोषण एक राजकुमारी की तरह किया । जनक ने उसका नाम सीता रखा । रावण इस तथ्य से अनभिज्ञ रहा । यही सीता राजा जनक द्वारा राम को दी गयी थी । महापुराण 68.12-24 देखें सीता