ज्योतिष चारण
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०४४,१०४६ .... ।१०४४। अघउड्ढतिरियपसरे किरणे अविलंबिदूण जोदीणं। जं गच्छेदि तवस्सी सा रिद्धी जोदि-चारणा णाम ।१०४६। = ..... ।१०४४। जिससे तपस्वी नीचे ऊपर और तिरछे फैलनेवाली ज्योतिषी देवों के विमानों की किरणों का अवलम्बन करके गमन करता है वह ज्योतिश्चारण ऋद्धि है ।१०४६।
अधिक जानकारी के लिये देखें ऋद्धि - 4.7।