तीर्थकृद् भावना
From जैनकोष
गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में छब्बीसवीं क्रिया । इसमें संपूर्ण आचारशास्त्रों का अभ्यास और श्रुतज्ञान का विस्तार दिया जाता है । महापुराण 38.55-63, 164-165
गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में छब्बीसवीं क्रिया । इसमें संपूर्ण आचारशास्त्रों का अभ्यास और श्रुतज्ञान का विस्तार दिया जाता है । महापुराण 38.55-63, 164-165