नीललेश्या
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति/2/297-298 विसयासत्तो विमदी माणी विण्णाणवज्जिदो मंदो। अलसो भीरूमायापवंचबहलो य णिद्दालू।297। परवंचणप्पसत्तो लोहंधो धणसुहाकंखी। बहुसण्णा णीलाए जम्मदि तं चेव धूमंतं।298। = विषयों में आसक्त, मतिहीन, मानी, विवेक बुद्धि से रहित, मंद, आलसी, कायर, प्रचुर माया प्रपंच में संलग्न, निंद्राशील, दूसरों के ठगने में तत्पर, लोभ से अंध, धन-धान्यजनित सुख का इच्छुक और बहुसंज्ञा युक्त अर्थात् आहारादि संज्ञाओं में आसक्त ऐसा जीव, नीललेश्या के साथ धूम्रप्रभा तक जाता है।297-298। देखें लेश्या
(छह लेश्याओं में) दूसरी लेश्या । यह तीसरे नरक के अधोभाग में रहने वाले नारकियों के होती है । हरिवंशपुराण 4,343