परीक्षा
From जैनकोष
न्यायदर्शन सूत्र/ टीका/1/1/2/8/8 लक्षितस्य यथालक्षणमुपापद्यते न वेति प्रमाणैरवधारणं परीक्षा। = उद्दिष्ट पदार्थ के जो लक्षण कहे गये, ‘वे ठीक हैं या नहीं’, इसको प्रमाण द्वारा निश्चय कर धारण करने को परीक्षा कहते हैं।
तत्त्वार्थाधिगम भाष्य/1/15 ईहा ऊहा तर्कः परीक्षा विचारणा जिज्ञासा इत्यनर्थांतरम्। = ईहा, ऊहा, तर्क, परीक्षा, विचारणा और जिज्ञासा ये एकार्थवाची शब्द हैं। (और भी देखें विचय )।
न्यायदीपिका/1/§6/8 विरुद्वनानायुक्तिप्राबल्यदौर्बल्यावधारणाय प्रवर्तमानो विचारः परीक्षा। सा खल्वेवं चेदेवं स्यादेवं स्यादित्येवं प्रवर्तते। = परस्पर विरुद्ध अनेक युक्तियों में से कौन सी युक्ति प्रबल है और कौन सी दुर्बल है इस बात के निश्चय करने के लिए ‘यदि ऐसा माना जायेगा तो ऐसा होगा, और उसके विरुद्ध ऐसा माना जायेगा तो ऐसा होगा’ इस प्रकार जो विचार किया जाता है, उसको परीक्षा कहते हैं।
- * अन्य संबंधित विषय
- तत्त्वज्ञान में परीक्षा की प्रधानता - देखें न्याय - 2.1 ।
- परीक्षा में हेतु का स्तवन - देखें हेतु ।
- श्रद्धान में परीक्षा की मुख्यता - देखें श्रद्धान - 2।
- देव, शास्त्र, गुरु आदि की परीक्षा - देखें देव ; शास्त्र ; गुरु ।
- साधु की परीक्षा का विधि निषेध व उपाय - देखें विनय - 5।
- परीक्षा में अनुभव की प्रधानता - देखें अनुभव - 3।