प्रसन्नकीर्ति
From जैनकोष
वानरवंशी राजा महेंद्र का पुत्र । यह हनुमान् का मामा था । गर्भकाल में महेंद्र ने हनुमान् की माता अंजना को अपने यहाँ आश्रय नहीं दिया था । हनुमान् का जन्म वन की एक गुहा में हुआ था । जब हनुमान् सीता की खोज में महेंद्र के नगर से होता हुआ आगे बढ़ रहा था तो उसके मन में महेंद्र को दंड देने का भाव हुआ । उसने युद्धध्वनियाँ की जिससे महेंद्र उससे ससैन्य लड़ने आया । प्रसन्नकीर्ति ने भी इस युद्ध में भाग लिया । इस युद्ध में प्रसन्नकीर्ति हारा और हनुमान ने उसे अपने विद्याबल से बांध लिया । यह देखकर महेंद्र को बडा आश्चर्य हुआ । उसने हनुमान् की प्रशंसा की । हनुमान ने प्रसन्नकीर्ति को छोड़ दिया । इसके पश्चात् वह रावण का पक्ष छोड़कर राम का सहायक हो गया । पद्मपुराण - 12.205-210, 50.17.46, 54.38