बोधपाहुड गाथा 1
From जैनकोष
( दोहा ) देव जिनेश्वर सर्व गुरु वंदूं मन-वच-काय । जा प्रसाद भवि बोध ले, पालैं जीव निकाय ।।१।।
इसप्रकार मंगलाचरण के द्वारा श्री कुन्दकुन्द आचार्यकृत गाथाबन्ध `बोधपाहुड' की देशभाषामय वचनिका का हिन्दी भाषानुवाद लिखते हैं, पहिले आचार्य ग्रन्थ करने की मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करते हैं -
बहुसत्थअत्थजाणे संजमसम्मत्तसुद्धतवयरणे ।
वंदित्ता आयरिए कसायमलवज्जिदे सुद्धे ।।१।।
बहुशास्त्रार्थज्ञापकान् संयमसम्यक्त्वशुद्धतपश्चरणान् ।
वन्दित्वा आचार्यान् कषायमलवर्जितान् शुद्धान् ।।१।।
शास्त्रज्ञ हैं सम्यक्त्व संयम शुद्धतप संयुक्त हैं ।
कर नमन उन आचार्य को जो कषायों से रहित हैं ।।१।।
सयलजणबोहणत्थं जिणमग्गे जिणवरेहिं जह भणियं ।
वोच्छामि समासेण छक्कायसुहंकरं सुणहं ।।२।।
सकलजनबोधनार्थं जिनमार्गे जिनवरै: यथा भणितम् ।
वक्ष्यामि समासेन षट्कायसुखंकरं शृणु ।।२।।युग्मम् ।।
अर सकलजन संबोधने जिनदेव ने जिनमार्ग में ।
छहकाय सुखकर जो कहा वह मैं कहूँ संक्षेप में ।।२।।
अर्थ - आचार्य कहते हैं कि मैं आचार्यो को नमस्कार कर, छहकाय के जीवों को सुख के करनेवाले जिनमार्ग में जिनदेव ने जैसे कहा है वैसे, जिसमें समस्त लोक के हित का ही प्रयोजन है - ऐसा ग्रन्थ संक्षेप में कहूँगा, उसको हे भव्य जीवों ! तु सुनो । जिन आचार्यो की वंदना की, वे आचार्य कैसे हैं ? बहुत शास्त्रों के अर्थ को जाननेवाले हैं, जिनका तपश्चरण सम्यक्त्व और संयम से शुद्ध है, कषायरूप मल से रहित है, इसीलिए शुद्ध है ।
भावार्थ - यहाँ आचार्यो की वंदना की, उनके विशेषण से जाना जाता है कि गणधरादिक से लेकर अपने गुरुपर्यंत सबकी वन्दना है और ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा की, उसके विशेषण से जाना जाता है कि जो बोधपाहुड ग्रन्थ करेंगे वह लोगों को धर्मार्ग में सावधान कर कुमार्ग छुड़ाकर अहिंसाधर्म का उपदेश करेगा ।।३।।