बोधपाहुड गाथा 19
From जैनकोष
(६) आगे जिनमुद्रा का स्वरूप कहते हैं -
दढसंजममुद्दाए इन्दियमुद्दा कसायदिढ मुद्दा ।
मुद्दा इह णाणाए जिणमुद्रा एरिसा भणिया ।।१९।।
दृढसंयममुद्रया इन्द्रियमुद्रा कषायदृढुद्रा ।
मुद्रा इह ज्ञानेन जिनमुद्रा ईदृशी भणिता ।।१९।।
निज आतमा के अनुभवी इन्द्रियजयी दृढ़ संयमी ।
जीती कषायें जिन्होंने वे मुनी जिनमुद्रा कही ।।१९।।
अर्थ - दृढ़ अर्थात् वज्रवत् चलाने पर भी न चले ऐसा संयम-इन्द्रिय मन का वश करना, षट्जीव निकाय की रक्षा करना, इसप्रकार संयमरूप मुद्रा से तो पाँच इन्द्रियों को विषयों में न प्रवर्ताना; उनका संकोच करना यह तो इन्द्रियमुद्रा है और इसप्रकार संयम द्वारा ही जिसमें कषायों की प्रवृत्ति नहीं है ऐसी कषायदृढ़ुद्रा है तथा ज्ञान को स्वरूप में लगाना इसप्रकार ज्ञान द्वारा सब बाह्यमुद्रा शुद्ध होती है । इसप्रकार जिनशास्त्र में ऐसी `जिनमुद्रा' होती है ।
भावार्थ - १. जो संयमसहित हो, २. जिसकी इन्द्रियाँ वश में हों, ३. कषायों की प्रवृत्ति न होती हो और ४. ज्ञान को स्वरूप में लगाता हो - ऐसा मुनि हो सो ही `जिनमुद्रा है ।।१९।।