बोधपाहुड गाथा 20
From जैनकोष
(७) आगे ज्ञान का निरूपण करते हैं -
संजमसंजुत्तस्स य सुझाणजोयस्स मोक्खमग्गस्स ।
णाणेण लहदि लक्खं तम्हा णाणं च णायव्वं ।।२०।।
संयमसंयुक्तस्य च १सुध्यानयोग्यस्य
म ा े क्ष म ा ग र् स् य ।
ज्ञानेन लभते लक्षं तस्मात् ज्ञानं च ज्ञातव्यम् ।।२०।।
संयमसहित निजध्यानमय शिवमार्ग ही प्राप्तव्य है ।
सद्ज्ञान से हो प्राप्त इससे ज्ञान ही ज्ञातव्य है ।।२०।।
अर्थ - संयम से संयुक्त और ध्यान के योग्य इसप्रकार जो मोक्षमार्ग उसका लक्ष्य अर्थात् लक्षणे योग्य-जाननेयोग्य निशाना जो अपना निजस्वरूप वह ज्ञान द्वारा पाया जाता है, इसलिए इसप्रकार के लक्ष्य को जानने के लिए ज्ञान को जानना ।
भावार्थ - संयम अंगीकार कर ध्यान करे और आत्मा का स्वरूप न जाने तो मोक्षमार्ग की सिदि्घ नहीं है, इसीलिए ज्ञान का स्वरूप जानना चाहिए, उसके जानने से सर्वसिद्धि है ।।२०।।