भावपाहुड गाथा 11
From जैनकोष
आगे मनुष्यगति के दु:खों को कहते हैं -
आगंतुक माणसियं सहजं सारीरियं च चत्तारि ।
दुक्खाइं मणुयजम्मे पत्तो सि अणंतयं कालं ।।११।।
आगंतुकं मानसिकं सहजं शारीरिकं च चत्वारि ।
दु:खानि मनुजजन्मनि प्राप्तोsसि अनन्तकं कालं ।।११।।
मानसिक देहिक सहज एवं अचानक आ पड़े ।
ये चतुर्विध दुख मनुजगति में आत्मन् तूने सहे ।।११।।
अर्थ - हे जीव ! तूने मनुष्यगति में अनन्तकाल तक आगन्तुक अर्थात् अकस्मात् वज्रपातादिक का आ गिरना, मानसिक अर्थात् मन में ही होनेवाले विषयों की वांछा का होना और तदनुसार न मिलना, सहज अर्थात् माता, पितादि द्वारा सहज से ही उत्पन्न हुआ तथा रागद्वेषादिक से वस्तु के इष्ट अनिष्ट मानने से दु:ख का होना, शारीरिक अर्थात् व्याधि, रोगादिक तथा परकृत छेदन, भेदन आदि से हुए दु:ख - ये चार प्रकार के और चकार से इनको आदि लेकर अनेक प्रकार के दु:ख पाये ।।११।।