भावपाहुड गाथा 13
From जैनकोष
आगे शुभभावना से रहित अशुभ भावना का निरूपण करते हैं -
कंदप्पमाइयाओ पंच वि असुहादिभावणाई य ।
भाऊण दव्वलिंगी पहीणदेवो दिवे जाओ ।।१३।।
कांदर्पीत्यादी: पंचापि अशुभादिभावना: च ।
भावयित्वा द्रव्यलिंगी प्रहीणदेव: दिवि जात: ।।१३।।
पंचविध कांदर्पि आदि भावना भा अशुभतम ।
मुनि द्रव्यलिंगीदेव हों किल्विषिक आदिक अशुभतम ।।१३।।
अर्थ - हे जीव ! तू द्रव्यलिंगी मुनि होकर कान्दर्पी आदि पाँच अशुभ भावना भाकर प्रहीणदेव अर्थात् नीचदेव होकर स्वर्ग में उत्पन्न हुआ ।
भावार्थ - कान्दर्पी, किल्विषिकी, संोही, दानवी और अभियोगिकी - ये पाँच अशुभ भावना हैं । निर्ग्रन्थ मुनि होकर सम्यक्त्व भावना बिना इन अशुभ भावनाओं को भावे तब किल्विष आदि नीच देव होकर मानसिक दु:ख को प्राप्त होता है ।।१३।।