भावपाहुड गाथा 15
From जैनकोष
ऐसे देव होकर मानसिक दु:ख पाये इसप्रकार कहते हैं -
देवाण गुण विहूई इड्ढी माहप्प बहुविहं दट्ठंु ।
होऊण हीणदेवो पत्तो बहु माणसं दुक्खं ।।१५।।
देवानां गुणान् विभूती: ऋद्धी: माहात्म्यं बहुविधं दृष्ट्वा ।
भूत्वा हीनदेव: प्राप्त: बहु मानसं दु:खम् ।।१५।।
निज हीनता अर विभूति गुण-ऋद्धि महिमा अन्य की ।
लख मानसिक संताप हो है यह अवस्था देव की ।।१५।।
अर्थ - हे जीव ! तू हीन देव होकर अन्य महर्द्धिक देवों के गुण, विभूति और ऋद्धि रूप अनेकप्रकार का माहात्म्य देखकर बहुत मानसिक दु:ख को प्राप्त हुआ ।
भावार्थ - स्वर्ग में हीन देव होकर बड़े ऋद्धिधारी देव के अणिमादि गुण की विभूति देखे तथा देवांगना आदि का बहुत परिवार देखे और आज्ञा, ऐश्वर्य आदि का माहात्म्य देखे तब मन में इसप्रकार विचारे कि मैं पुण्यरहित हूँ, ये बड़े पुण्यवान् हैं, इनके ऐसी विभूतिमाहात्म्य ऋद्धि है, इसप्रकार विचार करने से मानसिक दु:ख होता है ।।१५।।