भावपाहुड गाथा 153
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जो ऐसे अरहंत जिनेश्वर के चरणों में नमस्कार करते हैं, वे संसार की जन्मरूप बेल को काटते हैं -
जिणवरचरणंबुरुहं णमंति जे परमभत्तिराएण ।
ते जम्मवेल्लिमूलं खणंति वरभावसत्थेण ।।१५३।।
जिनवरचरणांबुरुहं नमंतिये परमभक्तिरागेण ।
ते जन्मवल्लीमूलं खनंति वरभावशस्त्रेण ।।१५३।।
जिनवर चरण में नमें जो नर परम भक्तिभाव से ।
वर भाव से वे उखाड़े भवबेलि को जड़ूल से ।।१५३।।
अर्थ - जो पुरुष परम भक्ति अनुराग से जिनवर के चरणकमलों को नमस्कार करते हैं, वे श्रेष्ठभावरूप `शस्त्र' से जन्म अर्थात् संसाररूपी बेल के मूल जो मिथ्यात्व आदि कर्म, उसको नष्ट कर डालते हैं (खोद डालते हैं) ।
भावार्थ - अपनी श्रद्धा-रुचि-प्रतीति से जो जिनेश्वरदेव को नमस्कार करता है, उनके सत्यार्थस्वरूप सर्वज्ञ वीतरागपने को जानकर भक्ति के अनुराग से नमस्कार करता है, तब ज्ञात होता है कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का यह चिह्न है, इसलिए मालू होता है कि इसके मिथ्यात्व का नाश हो गया, अब आगामी संसार की वृद्धि इसके नहीं होगी, इसप्रकार बताया है ।।१५३।।