भावपाहुड गाथा 164
From जैनकोष
आगे भाव के कथन का संकोच करते हैं -
किं जंपिएण बहुणा अत्थो धम्मो य काममोक्खो च ।
अण्णे वि य वावारा भावम्मि परिठि्ठया सव्वे ।।१६४।।
किं जल्पितेन बहुना अर्थ: धर्म: च काममोक्ष: च ।
अन्ये अपि च व्यापारा: भावे परिस्थिता: सर्वे ।।१६४।।
इससे अधिक क्या कहें हम धर्मार्थकाम रु मोक्ष में।
या अन्य सब ही कार्य में है भाव की ही मुख्यता ।।१६४।।
अर्थ - आचार्य कहते हैं कि बहुत कहने से क्या ? धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और अन्य जो कुछ व्यापार है वह सब ही शुद्धभाव में समस्तरूप से स्थित है ।
भावार्थ - पुरुष के चार प्रयोजन प्रधान हैं - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष । अन्य भी जो कुछ मंत्रसाधनादिक व्यापार हैं, वे आत्मा के शुद्ध चैतन्य परिणामस्वरूप भाव में स्थित हैं । शुद्धभाव से सब सिद्धि है, इसप्रकार संक्षेप में कहना जानो, अधिक क्या कहें? ।।१६४।।