भावपाहुड गाथा 18
From जैनकोष
आगे फिर कहते हैं कि इसप्रकार के गर्भवास से निकलकर जन्म लेकर अनेक माताओं का दूध पिया -
पीओ सि थणच्छीरं अणंतजम्मंतराइं जणणीणं ।
अण्णाण्णाण महाजस सायरसलिलादु अहिययरं ।।१८।।
पीतोsसि स्तनक्षीरं अनंतजन्मांतराणि जननीनाम् ।
अन्यासामन्यासां महायश ! सागरसलिलात् अधिकतरम् ।।१८।।
अरे तू नरलोक में अगणित जनम धर-धर जिया ।
हो उदधि जल से भी अधिक जो दूध जननी का पिया ।।१८।।
अर्थ - हे महायश ! उस पूर्वोक्त गर्भवास में अन्य-अन्य जन्म में, अन्य-अन्य माता के स्तन का दूध तूने समुद्र के जल से भी अतिशयकर अधिक पिया है ।
भावार्थ - जन्म-जन्म में, अन्य-अन्य माता के स्तन का दूध इतना पिया कि उसको एकत्र करें तो समुद्र के जल से भी अतिशयकर अधिक हो जावे । यहाँ अतिशय का अर्थ अनन्तगुणा जानना, क्योंकि अनन्तकाल का एकत्र किया हुआ दूध अनन्तगुणा हो जाता है ।।१८।।