भावपाहुड गाथा 20
From जैनकोष
आगे फिर कहते हैं कि जितने संसार में जन्म लिए उनके केश, नख, नाल कटे और उनका पुंज करें तो मेरु से अधिक राशि हो जाय -
भवसायरे अणंते छिण्णुज्झिय केसणहरणालट्ठी ।
पुञ्जइ जइ को वि जए हवदि य गिरिसमधिया रासी ।।२०।।
भवसागरे अनन्ते छिन्नोज्झितानि केशनखरनालास्थीनि ।
पुञ्जयति यदि कोsपि देव: भवति च गिरिसमाधिक: राशि: ।।२०।।
ऐसे अनन्ते भव धरे नरदेह के नख-केश सब ।
यदि करे कोई इकट्ठे तो ढेर होवे मेरु सम ।।२०।।
अर्थ - हे मुने ! इस अनन्त संसार सागर में तूने जन्म लिये, उनमें केश, नख, नाल और अस्थि कटे, टूटे उनका यदि कोई देव पुंज करे तो मेरु पर्वत से भी अधिक राशि हो जावे, अनन्तगुणा हो जावे ।।२०।।