भावपाहुड गाथा 25
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जो पर्याय स्थिर नहीं है, आयुकर्म के आधीन है, वह अनेकप्रकार से क्षीण हो जाती है -
विसवेयणरत्तक्खयभयसत्थग्गहणसंकिलेसेणं।
आहारुस्सासाणं णिरोहणा खिज्जए आऊ ।।२५।।
विषवेदनारक्तक्षयभयशस्त्रग्रहणसंक्लेशै: ।
आहारोच्छ्वासानां निरोधनात् क्षीयते आयु ।।२५।।
शस्त्र श्वासनिरोध एवं रक्तक्षय संक्लेश से ।
अर जहर से भय वेदना से आयुक्षय हो मरण हो ।।२५।।
हिमजलणसलिलगुरुयरपव्वयतरुरुहणपडणभंगेहिं। रसविज्जजोयधारण अणयपसंगेहिं विविहेहिं ।।२६।।
हिमज्वलनसलिलगुरुतरपर्वततरुरोहणपतनभंगै। रसविद्यायोगधारणानयप्रसंगै: विविधै: ।।२६।।
अनिल जल से शीत से पर्वतपतन से वृक्ष से । परधनहरण परगमन से कुमरण अनेक प्रकार हो ।।२६।।
इय तिरियमणुयजम्मे सुइरं उववज्झिऊण बहुवारं । अवमिच्चुहादुक्खं तिव्वं पत्तो सि तं मित्त ।।२७।।
इति तिर्यग्मनुष्यजन्मनि सुचिरं उत्पद्य बहुवारम् । अपमृत्युहादु:खं तीव्र प्राप्तोsसि त्वं मित्र ! ।।२७।।
हे मित्र ! इस विधि नरगति में और गति तिर्यंच में । बहुविध अनंते दु:ख भोगे भयंकर अपमृत्यु के ।।२७।।
अर्थ - विषभक्षण से, वेदना की पीड़ा के निमित्त से, रक्त अर्थात् रुधिर के क्षय से, भय से, शस्त्र के घात से, संक्लेश परिणाम से, आहार तथा श्वास के निरोध से इन कारणों से आयु का क्षय होता है । हिम अर्थात् शीत पाले से, अग्नि से, जल से, बड़े पर्वत पर चढ़कर पड़ने से, बड़े वृक्ष पर चढ़कर गिरने से, शरीर का भंग होने से, रस अर्थात् पारा आदि की विद्या उसके संयोग से धारण करके भक्षण करे, इससे और अन्याय कार्य, चोरी, व्यभिचार आदि के निमित्त से इसप्रकार अनेकप्रकार के कारणों का आयु का व्युच्छेद (नाश) होकर कुमरण होता है । इसलिए कहते हैं कि हे मित्र ! इसप्रकार तिर्यंच, मनुष्य जन्म में बहुतकाल बहुतबार उत्पन्न होकर अपमृत्यु अर्थात् कुमरण संबंधी तीव्र महादु:ख को प्राप्त हुआ ।
भावार्थ - इस लोक में प्राणी की आयु (जहाँ सोपक्रम आयु बँधी है उसी नियम के अनुसार) तिर्यंच-मनुष्य पर्याय में अनेक कारणों से छिदती है, इससे कुमरण होता है । इससे मरते समय तीव्र दु:ख होता है तथा खोटे परिणामों से मरण कर फिर दुर्गति ही में पड़ता है, इसप्रकार यह जीव संसार में महादु:ख पाता है । इसलिए आचार्य दयालु होकर उन दु:खों को बारबार दिखाते हैं और संसार से मुक्त होने का उपदेश करते हैं, इसप्रकार जानना चाहिए ।।२५-२६-२७ ।।