भावपाहुड गाथा 3
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि बाह्यद्रव्य निमित्तमात्र है `इसका अभाव' जीव के भाव की विशुद्धता का निमित्त जान बाह्यद्रव्य का त्याग करते हैं -
भावविसुद्धिणिमित्तं बाहिरगंथस्स कीरए चाओ ।
बाहिरचाओ विहलो अब्भंतरगंथजुत्तस्स ।।३।।
अर भावशुद्धि के लिए बस परीग्रह का त्याग हो ।
रागादि अन्तर में रहें तो विफल समझो त्याग सब ।।३ ।।
भावविशुद्धिनिमित्तं बाह्यग्रंथस्य क्रियते त्याग: ।
बाह्यत्याग: विफल: अभ्यन्तरग्रन्थयुक्तस्य ।।३।।
अर्थ - बाह्य परिग्रह का त्याग भावों की विशुद्धि के लिए किया जाता है, परन्तु अभ्यन्तर परिग्रह रागादिक हैं, उनसे युक्त के बाह्य परिग्रह का त्याग निष्फल है ।
भावार्थ - अन्तरंग भाव बिना बाह्य त्यागादिक की प्रवृत्ति निष्फल है, यह प्रसिद्ध है ।।३।।