भावपाहुड गाथा 51
From जैनकोष
आगे भावशुद्धिसहित मुनि हुए और उन्होंने सिद्धि पाई, उसका उदाहरण कहते हैं -
भावसमणो य धीरो जुवईजणबेढियो विसुद्धमई ।
णामेण सिवकुमारो परीत्तसंसारिओ जादो ।।५१।।
भावश्रमणश्च धीर: युवतिजनवेष्टित: विशुद्धमति: ।
नाम्ना शिवकुमार: परित्यक्तसांसारिक: जात: ।।५१।।
शुद्धबुद्धी भावलिंगी अंगनाओं से घिरे ।
होकर भी शिवकुमार मुनि संसारसागर तिर गये ।।५१।।
अर्थ - शिवकुमार नामक भावश्रमण स्त्रीजनों से वेष्टित हुए भी विशुद्ध बुद्धि का धारक धीर संसार को त्यागनेवाला हुआ ।
भावार्थ - शिवकुमार ने भाव की शुद्धता से ब्रह्मस्वर्ग में विद्युन्माली देव होकर वहाँ से चय कर जंबूस्वामी केवली होकर मोक्ष प्राप्त किया । उसकी कथा इसप्रकार है -
इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में पुष्कलावती देश के वीतशोकपुर में महापद्म राजा की वनमाला रानी के शिवकुमार नामक पुत्र हुआ । वह एक दिन मित्र सहित वनक्रीड़ा करके नगर में आ रहा था । उसने मार्ग में लोगों को पूजा की सामग्री ले जाते हुए देखा । तब मित्र को पूछा - ये कहाँ जा रहे हैं ? मित्र ने कहा, ये सगरदत्त नामक ऋद्धिधारी मुनि को पूजने के लिए वन में जा रहे हैं । तब शिवकुमार ने मुनि के पास जाकर अपना पूर्वभव सुन संसार से विरक्त हो दीक्षा ले ली और दृढ़धर नामक श्रावक के घर प्रासुक आहार लिया । उसके बाद स्त्रियों के निकट असिधाराव्रत परम ब्रह्मचर्य पालते हुए बारह वर्ष तक तप कर अन्त में संन्यास मरण करके ब्रह्मकल्प में विद्युन्माली देव हुआ । वहाँ से चयकर जम्बूकुमार हुआ सो दीक्षा ले केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गया । इसप्रकार शिवकुमार भावमुनि ने मोक्ष प्राप्त किया । इसकी विस्तार सहित कथा जम्बूचरित्र में है, वहाँ से जानिये । इसप्रकार भावलिंग प्रधान है ।।५१।।