भावपाहुड गाथा 55
From जैनकोष
आगे इसी अर्थ को दृढ़ करते हैं -
णग्गत्तणं अकज्जं भावणरहियं जिणेहिं पण्णत्तं ।
इय णाऊण य णिच्चं भाविज्जहि अप्पयं धीर ।।५५।।
नग्नत्वं अकार्यं भावरहितं जिनै: प्रज्ञप्तम् ।
इति ज्ञात्वा नित्यं भावये: आत्मानं धीर! ।।५५।।
भाव विरहित नग्नता कुछ कार्यकारी है नहीं ।
यह जानकर भाओ निरन्तर आतम की भावना ।।५५।।
अर्थ - भावरहित नग्नत्व अकार्य है, कुछ कार्यकारी नहीं है । ऐसा जिन भगवान् ने कहा है । इसप्रकार जानकर हे धीर ! हे धैर्यवान् मुने ! निरन्तर नित्य आत्मा की ही भावना कर ।
भावार्थ - आत्मा की भावना बिना केवल नग्नत्व कुछ कार्य करने वाला नहीं है, इसलिए चिदानन्दस्वरूप आत्मा की ही भावना निरन्तर करना, आत्मा की भावना सहित नग्नत्व सफल होता है ।।५५।।