भावपाहुड गाथा 6
From जैनकोष
आगे उपदेश करते हैं कि भाव को परमार्थ जानकर इसी को अंगीकार करो -
जाणहि भावं पढं किं ते लिंगेण भावरहिएण ।
पंथिय सिवपुरिपंथं जिणउवइट्ठं पयत्तेण ।।६।।
जानीहि भावं प्रथमं किं ते लिंगेन भावरहितेन ।
पथिक शिवपुरीपंथा: जिनोपदिष्ट: प्रयत्नेन ।।६।।
प्रथम जानो भाव को तु भाव बिन द्रवलिंग से ।
तो लाभ कुछ होता नहीं पथ प्राप्त हो पुरुषार्थ से ।।६।।
अर्थ - हे शिवपुरी के पथिक ! प्रथम भाव को जान, भावरहित लिंग से तुझे क्या प्रयोजन है? शिवपुरी का पंथ जिनभगवंतों ने प्रयत्नसाध्य कहा है ।
भावार्थ - मोक्षमार्ग जिनेश्वरदेव ने सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र आत्मभावस्वरूप परमार्थ से कहा है, इसलिए इसी को परमार्थ जानकर सर्व उद्यम से अंगीकार करो, केवल द्रव्यमात्र लिंग से क्या साध्य है ? इसप्रकार उपदेश है ।।६।।