भावपाहुड गाथा 60
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जो मोक्ष चाहे वह इसप्रकार आत्मा की भावना करे -
भावेह भावसुद्धं अप्पा सुविशुद्धणिम्मलं चेव ।
लहु चउगइ चइऊणं जइ इच्छह सासयं सुक्खं ।।६०।।
भावय भावशुद्धं आत्मानं सुविशुद्धनिर्मलं चैव ।
लघु चतुर्गति च्युत्वा यदि इच्छसि शाश्वतं सौख्यम् ।।६०।।
चतुर्गति से मुक्त हो यदि शाश्वत सुख चाहते ।
तो सदा निर्मलभाव से ध्याओ श्रमण शुद्धातमा ।।६०।।
अर्थ - हे मुनिजनों ! यदि चारगतिरूप संसार से छूटकर शीघ्र शाश्वत सुखरूप मोक्ष तुचाहो तो भाव से शुद्ध जैसे हो वैसे अतिशय विशुद्ध निर्मल आत्मा को भावो ।
भावार्थ - यदि संसार से निवृत्त होकर मोक्ष चाहो तो द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म से रहित शुद्ध आत्मा को भावो इसप्रकार उपदेश है ।।६० ।।