भावपाहुड गाथा 61
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जो आत्मा को भावे वह इसके स्वभाव को जानकर भावे, वही मोक्ष पाता है -
जो जीवो भावंतो जीवसहावं सुभावसंजुत्तो ।
सो जरमरणविणासं कुणइ फुडं लहइ णिव्वाणं ।।६१।।
य: जीव: भावयन् जीवस्वभावं सुभावसंयुक्त: ।
स: जरामरणविनाशं करोति स्फुटं लभते निर्वाणम् ।।६१।।
जो जीव जीवस्वभाव को सुधभाव से संयुक्त हो ।
भावे सदा व जीव ही पावे अमर निर्वाण को ।।६१।।
अर्थ - जो भव्यपुरुष जीव को भाता हुआ भले भाव से संयुक्त होता हुआ जीव के स्वभाव को जानकर भावे, वह जरा-मरण का विनाश कर प्रगट निर्वाण को प्राप्त करता है ।
भावार्थ - `जीव' ऐसा नाम तो लोक में प्रसिद्ध है, परन्तु इसका स्वभाव कैसा है ? इसप्रकार लोगों को यथार्थ ज्ञान नहीं है और मतान्तर के दोष से इसका स्वरूप विपर्यय हो रहा है । इसलिए इसका यथार्थ स्वरूप जानकर भावना करते हैं । वे संसार से निर्वृत्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।।६१।।