भावपाहुड गाथा 74
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि शुद्ध भाव ही स्वर्गोक्ष का कारण है, मलिनभाव संसार का कारण है -
भावो वि दिव्वसिवसुक्खभायणो भाववज्जिओ सवणो ।
कम्ममलमलिणचित्तो तिरियालयभायणो पावो ।।७४।।
भाव: अपि दिव्यशिवसौख्यभाजनं भाववर्जित: श्रमण: ।
कर्मलमलिनचित्त: तिर्यगालयभाजनं पाप: ।।७४।।
हो भाव से अपवर्ग एवं भाव से ही स्वर्ग हो ।
पर मलिनमन अर भाव विरहित श्रमण तो तिर्यंच हो ।।७४।।
अर्थ - भाव ही स्वर्ग-मोक्ष का कारण है और भावरहित श्रमण पापस्वरूप है, तिर्यंचगति का स्थान है तथा कर्मल से मलिन चित्तवाला है ।
भावार्थ - भाव से शुद्ध है वह तो स्वर्ग-मोक्ष का पात्र है और भाव से मलिन है वह तिर्यंचगति में निवास करता है ।।७४।।