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भूपाल

From जैनकोष

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सिद्धांतकोष से

महापुराण/65/ श्लोक नं. भरतक्षेत्रमें भूपाल नामकराजा (51) युद्ध में मान भंग होने के कारण चक्रवर्ती पदका निदान कर दीक्षा धारण कर ली (52-54)। संन्यास मरणकर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ (55) यह सुभौम चक्रवर्तीका पूर्वका तीसरा भव है।–देखें सुभौम ।


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पुराणकोष से

(1) सुभौम चक्रवर्ती के तीसरे पूर्वभव का जीव, भरतक्षेत्र का एक नृप । युद्ध में पराजित होने के कारण हुए मानभंग से संसार ले विरक्त होकर इसने संभूत गुरू से दीक्षा ले ली थी तथा तपश्चरण करते हुए चक्रवर्ती पद का निदान किया था । आयु के अंत में संन्यास-मरण करके यह महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर अयोध्या में राजा सहस्रबाहु का पुत्र कृतवीराधिप हुआ । महापुराण 65.51-58

(2) राजा का एक भेद । यह साधारण नृप की अपेक्षा अधिक शक्ति संपन्न होता है । इसके पास चतुरंगिणी सेना होती है । यह दिग्विजय करता है । महापुराण 4.70


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  • भ
  • पुराण-कोष
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