मुंड
From जैनकोष
मूलाचार/121
पंचवि इंदियमुंडा वचमुंडा हत्थपायमणमुंडा। तणुमुंडेण य सहिया दस मुंडा वण्णिदा समए।121।
= पाँचों इंद्रियों का मुंडन अर्थात् उनके विषयों का त्याग, वचन मुंडन अर्थात् बिना प्रयोजन के कुछ न बोलना, हस्त मुंडन अर्थात् हाथ से कुचेष्टा न करना , पादमुंडन अर्थात् अविवेक पूर्वक सुकोड़ने व फैलाने आदि व्यापार का त्याग, मन मुंडन अर्थात् कुचिंतवन का त्याग और शरीरमुंडन अर्थात् शरीर की कुचेष्टा का त्याग इस प्रकार दस मुंड जिनागम में कहे गये हैं।
एक क्रियावादी–देखें क्रियावाद ।