मूढ
From जैनकोष
परमात्मप्रकाश/ मूल/1/13
देहु जि अप्पा जो मुणइ सो जणु मूढ हवेइ।
= जो देह को ही आत्मा मानता है वह प्राणी मूढ अर्थात् बहिरात्मा है। (और भी देखें बहिरात्मा )।
देखें मोह का लक्षण –(द्रव्य गुण पर्यायों में तत्त्व की अप्रतिपत्ति होना मूढ भाव का लक्षण है। उसी के कारण ही जीव परद्रव्यों व पर्यायों में आत्मबुद्धि करता है।)