मोक्षपाहुड गाथा 24
From जैनकोष
आगे ध्यान के योग से मोक्ष प्राप्त करते हैं इस दृष्टान्त को दार्ष्टान्त द्वारा दृढ़ करते हैं -
अइसोहणजोएणं सुद्धं हें हवेइ जह तह य ।
कालाईलद्धीए अप्पा परमप्पओ हवदि ।।२४।।
अतिशोभनयोगेनं शुद्धं हें भवति यथा तथा च ।
कालादिलब्ध्या आत्मा परमात्मा भवति ।।२४।।
ज्यों शोधने से शुद्ध होता स्वर्ण बस इसतरह ही ।
हो आतमा परमातमा कालादि लब्धि प्राप्त कर ।।२४।।
अर्थ - जैसे सुवर्ण पाषाण सोधने की सामग्री के संबंध से शुद्ध स्वर्ण हो जाता है, वैसे ही काल आदि लब्धि जो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप सामग्री की प्राप्ति से यह आत्मा कर्म के संयोग से अशुद्ध है वही परमात्मा हो जाता है ।।२४।।
भावार्थ सुगम है ।