यथाख्यातचारित्र
From जैनकोष
मोहनीय कर्म का उपशम अथवा क्षय होने पर प्राप्त आत्मा का शुद्ध स्वरूप । इसे मोक्ष का साधन कहा है यह कषाय रहित अवस्था में उत्पन्न होता है । महापुराण 47.247, हरिवंशपुराण - 56.78, 64.19
मोहनीय कर्म का उपशम अथवा क्षय होने पर प्राप्त आत्मा का शुद्ध स्वरूप । इसे मोक्ष का साधन कहा है यह कषाय रहित अवस्था में उत्पन्न होता है । महापुराण 47.247, हरिवंशपुराण - 56.78, 64.19