योगसम्मह
From जैनकोष
दीक्षान्वय की एक क्रिया । इससे निष्परिग्रही योगी तपोयोग को धारण कर शुक्लध्यानाग्नि से कर्म जलाते हुए केवलज्ञान प्रकट करता है । (महापुराण 38.62, 295-300)
दीक्षान्वय की एक क्रिया । इससे निष्परिग्रही योगी तपोयोग को धारण कर शुक्लध्यानाग्नि से कर्म जलाते हुए केवलज्ञान प्रकट करता है । (महापुराण 38.62, 295-300)