योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 135
From जैनकोष
पुद्गल की अपेक्षा से जीव के औदयिक भावों की उत्पत्ति तथा स्थिति -
उत्पद्यन्ते यथा भावा: पुद्गलापेक्षयात्मन: ।
तथैवौदयिका भावा विद्यन्ते तदपेक्षया ।।१३५।।
अन्वय :- यथा पुद्गलापेक्षया आत्मन: भावा: उत्पद्यन्ते तथा एव तदपेक्षया औदयिका: भावा: विद्यन्ते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार पुद्गलात्मक कर्म के उदयादि की अपेक्षा अर्थात् निमित्त पाकर जीव के औदयिकादि भाव उत्पन्न होते हैं; उसीप्रकार पुद्गलरूप कर्म की अपेक्षा अर्थात् उदय के निमित्त से उत्पन्न औदयिक भाव विद्यमान रहते हैं ।