योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 357
From जैनकोष
जिनलिंग धारण करना चाहिए -
विमुच्य विविधारम्भं पारतन्त्र्यकरं गृहम् ।
मुक्तिं यियासता धार्यं जिनलिङ्गं पटीयसा ।।३५७।।
अन्वय :- मुक्तिं यियासता पटीयसा विविधारम्भं पारतन्त्र्यकरं गृहं विमुच्य जिनलिङ्गं धार्य् ।
सरलार्थ :- जो भव्य मनुष्य मुक्ति-प्राप्त करने का इच्छुक हों, अति निपुण हों, उसे अनेक प्रकार के आरंभों से सहित और अत्यंत पराधीनता का कारण घर अर्थात् गृहस्थपने का त्याग कर यथाजात जिनलिंग अर्थात् दिगम्बर मुनिदीक्षा धारण करनी चाहिए ।