योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 408
From जैनकोष
जिनलिंग-ग्रहण में बाधक व्यंग -
कुल-जाति-वयो-देह-कृत्य-बुद्धि-क्रुधादयः ।
नरस्य कुत्सिता व्यङ्गास्तदन्ये लिङ्गयोग्यता ।।४०८।।
अन्वय :- कुत्सिता: कुल-जाति-वय:-देह-कृत्य-बुद्धि-क्रुधादयः नरस्य व्यङ्गा: (सन्ति) । तद् अन्ये (सुकुलादय:) लिङ्गयोग्यता ।
सरलार्थ :- जिनलिंग के ग्रहण करने में कुकुल, कुजाति, कुवय, कुकृत्य, कुबुद्धि और कुक्रोधादिक ये मनुष्य के जिनलिंग ग्रहण करने में व्यंग हैं/भंग हैं/बाधक हैं । इनसे भिन्न सुकुल, सुजाति आदि जिनलिंग-ग्रहण करने की योग्यता लिये हुए हैं ।