योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 422
From जैनकोष
स्वल्पलेपी मुनिराज का स्वरूप -
आहारमुपधिं शय्यां देशं कालं बलं श्रमम् ।
वर्तते यदि विज्ञाय `स्वल्पलेपो' यतिस्तदा ।।४२२।।
अन्वय :- यदि यति: आहारं उपधिं शय्यां देशं कालं बलं (च) श्रमं विज्ञाय वर्तते, तदा (स:) स्वल्पलेप: (भवति) ।
सरलार्थ :- यदि यति/मुनिराज आहार, परिग्रह, देश, काल, बल और श्रम को भले प्रकार जानकर प्रवृत्त होते हैं तो वे अल्पलेपी होते हैं अर्थात् मुनिराज को थोड़े कर्म का बंध होता है ।