योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 483
From जैनकोष
सच्चा वैराग्य का स्वरूप -
भोग-संसार-निर्वेदो जायते पारमार्थिक: ।
सम्यग्ज्ञान-प्रदीपेन तन्नैर्गुण्यावलोकने ।।४८३।।
अन्वय :- सम्यग्ज्ञान-प्रदीपेन तत्-नैर्गुण्यावलोकने (कृते) भोग-संसार-निर्वेद: पारमार्थिक: जायते ।
सरलार्थ :- जब सम्यग्ज्ञानरूप दीपक से पंचेंद्रियों के रम्य भोग और आकर्षक लगनेवाले राग-द्वेषरूप संसारवर्धक परिणामों में निर्गुणता अर्थात् निरर्थकता/व्यर्थता भलीभाँति समझ में आती है, तब भोग और संसार से वास्तविक/सच्चा वैराग्य होता है ।