योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 495
From जैनकोष
कषाय परिणामों का स्वरूप -
आत्मनो ये परीणामा: मलत: सन्ति कश्मला: ।
सलिलस्येव कल्लोलास्ते कषाया निवेदिता: ।।४९६।।
अन्वय : - आत्मन: ये परीणामा: मलत: कश्मला: सन्ति ते (परीणामा:) सलिलस्य कल्लोला: इव कषाया: निवेदिता: ।
सरलार्थ :- आत्मा के जो परिणाम कर्मरूपी मल के निमित्त से मलीन/विभावरूप हो जाते हैं, वे परिणाम जल की कल्लोलों की तरह कषाय कहे गये हैं ।