योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 528
From जैनकोष
रागी सर्वदा दोषी -
रागिण: सर्वदा दोषा: सन्ति संसारहेतव: ।
ज्ञानिनो वीतरागस्य न कदाचन ते पुन: ।।५२९।।
अन्वय : - रागिण: संसारहेतव: दोषा: सर्वदा सन्ति, पुन: ज्ञानिन: वीतरागस्य ते (दोषा:) कदाचन न (सन्ति) ।
सरलार्थ :- रागी अर्थात् मिथ्यादृष्टि जीव के संसार के कारणभूत सर्व दोष सदाकाल होते हैं; परन्तु ज्ञानी वीतरागी जीव के संसार के कारणभूत सर्व दोष कदाचित् भी नहीं होते ।