योगसार - जीव-अधिकार गाथा 16
From जैनकोष
सम्यक्त्व का स्वरूप -
यथा वस्तु तथा ज्ञानं संभवत्यात्मनो यत: ।
जिनैरभाणि सम्यक्त्वं तत्क्षमं सिद्धिसाधने ।।१६।।
अन्वय :- यथा वस्तु तथा आत्मन: ज्ञानं यत: संभवति (तत्) सम्यक्त्वं जिनै: अभाणि, तत् सिद्धिसाधने क्षमं (भवति) ।
सरलार्थ :- वस्तु जिस रूप में है, उसको उसी रूप में जानना आत्मा को जिस कारण से होता है, उसको जिनेन्द्र देव ने सम्यक्त्व कहा है । वह सम्यक्त्व आत्मसिद्धि का साधन है ।