योगसार - जीव-अधिकार गाथा 38
From जैनकोष
आत्मा के ध्यान से कर्मो से छुटकारा -
चारित्रं दर्शनं ज्ञानमात्मरूपं निरञ्जनम् ।
कर्मभिर्मुच्यते योगी ध्यायमानो न संशय: ।।३८ ।।
अन्वय :- निरञ्जनं ज्ञानं दर्शनं चारित्रं (च) आत्मरूपं ध्यायमान: योगी कर्मभि: मुच्यते न संशय: ।
सरलार्थ :- निर्मल दर्शन, ज्ञान, चारित्र यह आत्मा का स्वरूप/स्वभाव है । इस आत्मस्वरूप को ध्याते हुये योगी कर्मो से छूट जाते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं ।