योगसार - जीव-अधिकार गाथा 42
From जैनकोष
रत्नत्रय परिणत आत्मा ही मोक्षमार्ग है -
सम्यक्त्व-ज्ञान-चारित्र-स्वभाव:परमार्थत:।
आत्मा रागविनिर्मुक्तो मुक्तिमार्गो विनिर्मल: ।।४२ ।।
अन्वय :- परमार्थत: सम्यक्त्व-ज्ञान-चारित्र-स्वभाव: रागविनिर्मुक्त: विनिर्मल: आत्मा (एव) मुक्तिमार्ग: (अस्ति) ।
सरलार्थ :- निश्चय की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वभावी रागरहित निर्मल आत्मा ही मोक्षमार्ग अर्थात् मोक्ष का उपाय/साधन है ।