योगसार - जीव-अधिकार गाथा 5
From जैनकोष
निजस्वभाव को जानने का फल -
परद्रव्यबहिर्भूतं स्व-स्वभावमवैति य: ।
परद्रव्ये स कुत्रापि न च द्वेष्टि न रज्यति ।।५।।
अन्वय :- य: परद्रव्यबहिर्भूतं स्व-स्वभावं अवैति स: परद्रव्ये कुत्र अपि न रज्यति न च द्वेष्टि ।
सरलार्थ :- जो परद्रव्य से बहिर्भूत अपने स्वभाव को जानता है, वह परद्रव्य में अर्थात् परद्रव्य की किसी भी अवस्था में न राग करता है न द्वेष करता है ।