योगसार - जीव-अधिकार गाथा 50
From जैनकोष
परद्रव्योपासक जीव का स्वरूप -
ये मूढा लिप्सवो मोक्षं परद्रव्यमुपासते ।
ते यान्ति सागरं मन्ये हिमवन्तं यियासव: ।।५०।।
अन्वय :- ये मोक्षं लिप्सव: परद्रव्यं उपासते ते मूढा: हिमवन्तं यियासव: (अपि) सागरं यान्ति; (इति अहं) मन्ये ।
सरलार्थ :- जो मोक्ष की लालसा/तीव्र इच्छा रखते हुए भी परद्रव्य की उपासना करते हैं अर्थात् परद्रव्य के भक्त एवं सेवक बने हुए हैं, परद्रव्यों के पीछे सुख की आशा से दौड़ते हैं, वे मूढ़, अज्ञानीजन हिमवान पर्वत पर चढ़ने के इच्छुक होते हुए भी समुद्र की ओर चले जाते हैं; ऐसा मैं (आचार्य अमितगति) मानता हूँ ।