योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 256
From जैनकोष
ध्यान से ही सर्वोत्तम निर्जरा -
दूरीकृत-कषायस्य विशुद्धध्यानल क्ष ण : ।
विधत्ते प्रक्रम: साधो: कर्मणां निर्जरां पराम् ।।२५६।।
अन्वय :- दूरीकृतकषायस्य साधो: विशुद्ध-ध्यान-लक्षण: प्रक्रम: कर्मणां परां निर्जरां विधत्ते ।
सरलार्थ :- जिन मुनिराज ने क्रोधादि कषाय परिणामों को दूर किया है, उन मुनिराज ने विशुद्धध्यानरूप लक्षणवाला प्रक्रम/उपक्रम अर्थात् कार्य किया है । (यह कार्य ही भावनिर्जरा है) । इससे ज्ञानावरणादि आठों द्रव्यकर्मो की सर्वोत्तम निर्जरा होती है ।