योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 262
From जैनकोष
शुद्ध आत्मतत्त्व को न जाननेवाले के सर्व तप व्यर्थ :-
बाह्यमाभ्यन्तरं द्वेधा प्रत्येकं कुर्वता तप: ।
नैनो निर्जीर्यते शुद्धमात्मतत्त्वमजानता ।।२६२।।
अन्वय :- शुद्धं आत्मतत्त्वं अजानता बाह्यं आभ्यन्तरं द्वेधा प्रत्येकं तप: कुर्वता (अपि) एन: न निर्जीर्यते ।
सरलार्थ :- जो जीव निज शुद्ध आत्मतत्त्व को न जानते हुए जिनेन्द्र कथित अनशनादि छहों बाह्य तप और प्रायश्चित्तादि छहों अंतरंग तप - इनमें से प्रत्येक तप का आचरण करता है, तो भी उस जीव के किसी भी कर्म की निर्जरा नहीं होती ।