योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 267
From जैनकोष
जिनागम के ज्ञान का महत्त्व -
विचित्रे चरणाचारे वर्तानोsपि संयत: ।
जिनागममजानान: सदृशो गतचक्षुष: ।।२६७।।
अन्वय :- विचित्रे चरणाचारे वर्तान: अपि जिनागमं अजानान: संयत: गतचक्षुष: सदृश: (भवति) ।
सरलार्थ :- अनेक प्रकार के आचरण में प्रवर्तान होते हुए भी जो संयमी जिनागम को नहीं जानता, वह चक्षुहीन के समान हैं अर्थात् उसका सर्व आचरण अन्धानुकरण/अन्धाचरण है अर्थात् व्यर्थ है ।