योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 306
From जैनकोष
शुद्धात्मध्यान से मोह का नाश -
न मोह-प्रभृति-च्छेद: शुद्धात्मध्यानतो विना ।
कुलिशेन विना येन भूधरो भिद्यते न हि ।।३०६।।
अन्वय :- येन कुलिशेन विना भूधर: न हि भिद्यते (तथैव) शुद्धात्मध्यानत: विना मोहप्रभृि त-च्छेद: न (भवति) ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार वज्र के बिना पर्वत नहीं भेदा जाता, उसीप्रकार शुद्ध आत्मा के ध्यान के बिना मोहादि कर्मो का छेद अर्थात् नाश नहीं होता ।