योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 335
From जैनकोष
वाद-विवाद का फल -
वादानां प्रतिवादानां भाषितारो विनिश्चितम् ।
नैव गच्छन्ति तत्त्वान्तं गतेरिव विलम्बिन: ।।३३५।।
अन्वय :- गते: विलम्बिन: इव वादानां प्रतिवादानां भाषितार: विनिश्चितं तत्त्वान्तं नैव गच्छन्ति ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार चलने में विलंब करनेवाला प्रमादी मनुष्य अपने इच्छित स्थान पर्यंत नहीं पहुँच पाता; उसीप्रकार जो कोई साधक वाद-प्रतिवाद के चक्कर में पडे रहते हैं, वे निश्चित रूप से तत्त्व के अंत को अर्थात् परमात्म पद को प्राप्त नहीं होते अर्थात् संसार में ही भटकते रहते हैं ।