योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 355
From जैनकोष
दृढ़चित्त होना आवश्यक -
कुतर्केsभिनिवेशोsतो न युक्तो मुक्ति-काङि्क्षणाम् ।
आत्मतत्त्वे पुनर्युक्त: सिद्धिसौध-प्रवेशके ।।३५५।।
अन्वय :- अत: मुक्ति-काङि्क्षणां कुतर्के अभिनिवेश: न युक्त: पुन: सिद्धिसौध-प्रवेशके आत्मतत्त्वे (अभिनिवेश:) युक्त: ।
सरलार्थ :- इसलिए मोक्षाभिलाषी साधक-श्रावक एवं मुनिराजों को कुतर्क में अपने मन को अर्थात् व्यक्त विकसित ज्ञान को नहीं लगाना चाहिए; प्रत्युत अपने मन को निजात्म तत्त्व में जोडना अर्थात् दृढ़चित्त होना उचित है और यह कार्य स्वात्मोपलब्धिरूप सिद्धि-सदन में प्रवेश करने के लिए प्रवेश द्वार है ।