योगसार - संवर-अधिकार गाथा 241
From जैनकोष
प्रत्याख्यान का स्वरूप -
आगाम्यागो निमित्तानां भावानां प्रतिषेधनम् ।
प्रत्याख्यानं समादिष्टं विविक्तात्म-विलोकिन: ।।२४१।।
अन्वय :- विविक्त-आत्म-विलोकिन: आगाम्याग: निमित्तानां भावानां प्रतिषेधनं प्रत्याख्यानं समादिष्टं ।
सरलार्थ :- शुद्धात्मा के अनुभवी जीव भविष्यकाल में उत्पन्न होनेवाले पुण्य-पापरूप द्रव्य कर्मो का और उनके निमित्त से होनेवाले भावी पुण्य-पापरूप परिणामों का त्याग करते हैं, उस त्याग को प्रत्याख्यान कहते हैं ।