राजऋषि
From जैनकोष
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति टीका / गाथा 249 में उद्धृत
-राजाब्रह्मा च देवपरम इति ऋषिर्विक्रियाक्षीणशक्तिप्राप्तो बुद्ध्यौषधीशो वियदयनपटुर्विश्ववेदी क्रमेण।"
= ऋषि चार प्रकार के कहे गये हैं-राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि और परमर्षि। तिनमें विक्रिया और अक्षीण (क्षेत्र) शक्ति प्राप्त साधु राजर्षि कहलाते हैं; बुद्धि व औषधि ऋद्धि युक्त साधु ब्रह्मर्षि कहलाते हैं; आकाशगामी ऋद्धि संपन्न देवर्षि और विश्ववेदी केवल ज्ञानी अर्हंत भगवान् परमर्षि कहलाते हैं।
( चारित्रसार पृष्ठ 47/1 में उद्धृत), (सागार धर्मामृत अधिकार 7/20 में उद्धृत)
अधिक जानकारी के लिये देखें ऋषि ।